डॉ. भाऊ दाजी लाड मुंबई शहर वस्तुसंग्रहालय – विशेष बातें 2015 ENGLISH | MARATHI | HINDI    
     
   
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प्रिय  मित्रों,

सन २०१५ का वर्ष बड़ा ही व्यस्त रहा । यहाँ इस वर्ष आयोजित किए गए प्रदर्शन, विशेष कार्यक्रम, फ़िल्म प्रेक्षण, भाषण, अभिनय, कार्यशालाएँ और बच्‍चों के कार्यक्रमों की कुछ झलकियाँ आप तक पहुँचाने में हमें बहुत ख़ुशी और संतोष का एहसास होता है । विविधता से भरे इस वर्ष में कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भी घड़ी हैं, जैसे कि संग्रहालय के विस्तार के लिए तैयार की गई योजना और दिल्ली कला मेले में सहभाग । सार्वजनिक कार्यक्रमों और क्रियाकलाप के अतिरिक्त हमने विविध संग्रहों के बारे में अनुसंधान और उनके अंकीकरण का काम भी जारी रखा है और इस वर्ष संग्रहालय के सभी संग्रहों का विस्तारित प्रलेखन भी पूरा किया है । हमने गूगल के सहयोग से संग्रहालय की वर्च्युअल टूर,यानी, आभासी सैर तैयार की है ताकि आप विश्व के किसी भी कोने से हमारा संग्रहालय देख सकें । इस मौक़े पर, मुझे मुंबई मिरर के मुंबई हीरोज़ अभियान में नामज़द करने के लिए मैं आप सब का शुक्रिया अदा करना चाहूँगी । हम आशा करते हैं कि आनेवाले वर्ष में भी आप हमारे संग्रहालय की मुलाक़ात लेकर यहाँ के कार्यक्रमों में पहले से भी ज़्यादा उमंग से सहभागी होते रहेंगे - ख़ासकर इस सूचनापत्र में नमुद संग्रहालय के संगी-साथी / संग्रहालय मित्र कार्यक्रम में शामिल होकर और सोशल मिडिया, यानी,सामाजिक संपर्क साइटों पर जाकर हमारे आनेवाले कार्यक्रमों के बारे में पता लगाकर ।


तसनीम ज़कारिया मेहता
प्रबंधिका न्यासी एवं मानद्‌ निर्देशिका

 
     
   
     
 

गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट पर भा.दा.ला. संग्रहालय का प्रक्षेपण

हमें यह घोषणा करने में बेहद ख़ुशी है कि अब डॉ.भाऊ दाजी लाड संग्रहालय की जानकारी गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट परऑन लाइन उपलब्ध है ।

 

गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट,गूगल द्वारा बनाया गया एक अनोखा उपकरण है जो अपने उपभोक्ताओं को विश्व के कुछ बेहतरीन संग्रहालयों की वर्च्युअल टूर,यानी, आभासी सैर का मज़ा उठाने का मौक़ा देता है । अब ५ करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट उपभोक्ता बटन के इशारे पर विश्व के सांस्कृतिक कलाकृति भंडार का नज़ारा कर सकते हैं ।


२१ जनवरी,२०१६ के दिन हुए उद्‍घाटन समारोह में गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट के निर्देशक, श्री अमित सूद ने कहा कि उनकी इस इन्स्टिट्यूट में समावेश के लिए मुंबई की सभी संस्थाओं में से हमारा संग्रहालय चुना गया क्योंकि "यह इस शहर के बारे में है और उसके सांस्कृतिक इतिहास की हिफ़ाज़त करता है ।"


संग्रहालय के दल ने गूगल के साथ हाथ मिलाकर दो वर्ष तक की हुई विस्तीर्ण मेहनत के बाद, आज हमारे संग्रह और समकालीन कला प्रदर्शनियों से २०० से ज़्यादा झलकियाँ आभासी रूप में देखी जा सकती हैं । म्युज़ियम व्यू में जाकर संग्रहालय की ३६०अंश की आभासी सैर की जा सकती है । इस सैर के लिए विशिष्ट रूप से बनाई गई एक प्रदर्शनी संग्रहालय के पुनःस्थापन एवं पुनरुद्धार की कहानी बताती है; इसके अलावा सैर में अतुल दोडिया द्वारा रचित ७००० म्युज़ियम्स: ए प्रॉजेक्ट फ़ोर द रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया, रीना कल्लट की कलाकृति ज़ेय्‍नआर्ट पब्लिक/इंडिया और सुदर्शन शेट्टी की धिस टू शॅल पास भी समाविष्ट हैं । गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट के ज़ूम उपकरण की बदौलत अब संग्रहों को अल्ट्रा हाय रेज़ोल्युशन,यानी,अति उच्च विश्लेषण से देखा जा सकता है । उपभोक्ता आँखों से नज़र न आये वैसी तफ़सीली और बारीकी से संग्रहों की ख़ूबियाँ देख सकते हैं ।


जिन्हें वास्तव में हमारे यहाँ आकर संग्रहालय देखने का मौक़ा नहीं मिलता,ऐसे विश्व के किसी भी कोने में रहते लोग भी अब इस पहलकदमी की बदौलत संग्रहालय की कलाकृतियों और प्रदर्शनियों की आभासी सैर के ज़रिये भेंट ले सकते हैं ।


गूगल कल्चरल इन्स्टिट्यूट के निर्देशक, श्री अमित सूद का कहना है कि " तंत्रज्ञान की मदद से डॉ.भाऊ दाजी लाड संग्रहालय जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं को उनका शानदार संग्रह ऑन लाइन प्रदर्शित करने में सहायता कर सकना हमारे लिए सौभाग्य की बात है । इन्स्टिट्यूट का मानदण्ड यह है कि चुने हुए संग्रह का स्तर उच्च कोटि का एवं प्रासंगिक हो और उसे अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया हो । इस संग्रहालय में ये सभी गुण मौजूद हैं ।"


गूगल पर जाकर संग्रहालय की सैर कीजिए : bit.do/bdlmuseum

 
   
   
  अमित सूद शुभारंभ समारोह (बाएं) में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते; बीडीएल संग्रहालय GCI पर (दाएं)  
     
   
   मुंबई हीरोज़ : मुंबई मिरर का अभियान  
   
     
   

मुंबई हीरोज़ मुंबई मिरर का एक अभियान था जिसमें उन लोगों को सम्मानित किया गया जिन्होंने मुंबई शहर और यहाँ के नागरिकों के हित के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अग्रगामी कार्य किया और जो इस शहर और हमारे देश को जीने लायक बनाने के सतत प्रयत्न कर रहे हैं ।


श्रीमति तसनीम ज़कारिया मेहता, डॉ.भाऊ दाजी लाड संग्रहालय की प्रबंधक न्यासी एवं मानद्‌ निदेशिका को संग्रहालय की इमारत के जीर्णोद्धार के लिए और उसे इस शहर का सांस्कृतिक केन्द्र बनाने में कामयाबी पाने के लिए मुंबई हीरो के खिताब के लिए नामज़द किया गया ।


२९ अक्‍तूबर २०१५ के दिन श्रीमति मेहता पाँच मुंबई हीरोज़ में से एक घोषित की गईं । नामांकित कलाकार और निर्णायक समिति सदस्य श्री अतुल दोडिया ने कहा, "आपने एक जीर्ण अवस्था में पड़ी संस्था का पुनरुद्धार कर के उसे नयी चेतना दी है । आप सिर्फ़ हम कलाकारों के लिए ही नहीं, बल्कि हर स्तर के, हर तरह के लोगों के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं । हर मुसीबत का सामना करते हुए ऐसा सपना साकार करने हौसला सचमुच असाधारण है ।"

 
     

 

“वस्तुसंग्रहालयातील सर्वच काही अविस्मरणीय आहे. संग्रहालयाची इमारत आणिइथला संग्रह ज्या प्रकारे मुंबईचा इतिहास व कलेचा ठेवा आपल्यासमोर उलगडतो, त्याला तोड नाही. जीर्णोद्धार तर केवळ अजोड!”


Lord लॉर्ड स्टिफन ग्रीन, लंडनच्या निसर्ग इतिहास वस्तुसंग्रहालयाचे अध्यक्ष

 

     
   प्रदर्शनियाँ | कमलनारायण बजाज विशिष्ट प्रदर्शनियाँ दीर्घा  

सिल्वर मॅजिक : हिन्दी सिनेमा के सुवर्ण युग के पुराने छायाचित्र, जे.एच.ठक्कर की रूपचित्र रचनाएँ

दिसंबर १४, २०१५ - मार्च ३१, २०१६

कमलनारायण बजाज विशिष्ट प्रदर्शनियाँ दीर्घा

किन्ड्रेड नेशन्स : भारत-अमरीका संबंध का इतिहास : १७९० -१९४७

सितंबर २४, २०१५ - अक्‍तूबर २७, २०१५

कमलनारायण बजाज विशिष्ट प्रदर्शनियाँ दीर्घा

इस प्रदर्शनी में श्री जे.एच. ठक्कर (१९२३ - २००३) द्वारा निर्मित सिल्वर जेलाटिन प्रक्रिया से बने पुराने छायाचित्र प्रदर्शित हैं । श्री ठक्कर मुंबई के जाने-माने इंडिया फ़ोटो स्टुडियो के स्थापक थे । जब देश का बँटवारा हुआ तब आप करांची से मुंबई आए और दादर के चित्रा सिनेमागृह की बगल में इस स्टुडियो की स्थापना की । भारत में स्टुडियो छायाचित्रण प्रचलित करने में आपका बड़ा योगदान था । १९५० और १९६० के दशक मुंबई फ़िल्म उद्योग का सुवर्ण युग माना जाता है । आपने रचे रूपचित्रों ने इस युग को जनता के लिए यादगार बनाया । इस प्रदर्शनी में राज कपूर, वहीदा रहमान, नरगिस जैसे मशहूर सितारों के रूपचित्रों का समावेश है ।


राम रहमान द्वारा आयोजित

इस प्रदर्शनी में अनन्य छायाचित्रों,दस्तावेज़ और अन्य वस्तुओं के ज़रिये भारतीयों और अमरिकनों के परस्पर संबंध दिखाए गए हैं । १८ वीं सदी से लेकर १९४७, यानी, आज़ादी के काल की इन ऐतिहासिक झलकियों में दोनों देशों के बीच जुड़ी अलग-अलग कड़ियों का समावेश है, जैसे कि,शुरुआत के वाणिज्य, सांस्कृतिक, सैद्धांतिक और दार्शनिक संपर्क, नेतृत्त्व के बीच लेन-देन, दूसरा विश्व युद्ध, वगैरह ।


मेरिडियन इंटरनॅशनल सेंटर वॉशिंगटन डीसी और अमरीकन दूतावास, नयी दिल्ली के सहयोग से

     

बोअर्न ऍन्ड शेपर्ड : फ़िगर्स इन टाइम

अगस्त २०, २०१५ - सितंबर १५, २०१५

कमलनारायण बजाज विशिष्ट प्रदर्शनियाँ दीर्घा
| मुंबई का उद्‍गम दीर्घा

वाराणसी की अद्‍भुत बुनावट

ऑगस्ट २२, २०१५ - ऑक्टोबर १५, २०१५

कमलनारायण बजाज मुंबई दीर्घा | औद्योगिक कला दीर्घा | १९ वीं सदी के चित्र दीर्घा

बोअर्न ऍन्ड शेपर्ड कोलकाता के एस्प्लनड इलाके में स्थित दुनिया का सब से पुराना छायाचित्र स्टुडियो है जो आज तक उसी नाम के नीचे चल रहा है । इस प्रदर्शनी में इस स्टुडियो की जानी-मानी सजीव शैली में बने पुराने छायाचित्र प्रदर्शित हैं । ये छायाचित्र वाक़ई दर्शकों को १९ वीं सदी की झलकियाँ दिखानेवाली महत्त्वपूर्ण कलाकृतियाँ हैं ।


तस्वीर के सहयोग से

जुलाहों और उनके हुनर को दी गई श्रद्धांजली के उपक्रम की पहल हुई वोवन वंडर्स ऑफ़ वाराणसी,यानी वाराणसी की अद्‍भुत बुनावट प्रदर्शनी से । इस प्रदर्शनी की बदौलत भारत के प्रतिभावान बुनकर और नामांकित फ़ॅशन डिज़ाइनसाज़ बनारसी वस्त्र उद्योग को नवाजने के लिए इकठ्ठा हुए ।


एन.सी. शैना


वस्त्र उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से


लॅक्मे फ़ॅशन वीक के सहाय्य से

     

गेम्ज़ पीपल प्ले ठुकराल और टाग्रा द्वारा निर्मित

मार्च १८, २०१५ - जून ९, २०१५

कमलनारायण बजाज मुंबई दीर्घा
| औद्योगिक कला दीर्घा | १९ वीं सदी के चित्र दीर्घा | मुंबई का उद्‍गम दीर्घा

ऍज़ इफ़ - III कंट्री ऑफ़ द सी कॅम्प द्वारा

फ़रवरी २२, २०१५ - अप्रैल ७, २०१५

कमलनारायण बजाज मुंबई दीर्घा
| औद्योगिक कला दीर्घा | १९ वीं सदी के चित्र दीर्घा | मुंबई का उद्‍गम दीर्घा

श्री ठुकराल और श्री टाग्रा ने संग्रहालय के गंजिफ़ा पत्ते और अन्य प्राचीन और पारंपारिक खेलों के संग्रह से प्रेरणा पाकर इस नुमाइश का निर्माण किया । उन्होंने ’खेल’ की धारणा को सांस्कृतिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य से जाँचा और संग्रहालय के विस्तार को खेल की रणभूमि बनाकर खेलों को तीन वर्गों में बाँटा - भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक और तीसरा, भूतकाल, वर्तमान और भविष्य को घेरता हुआ । इस कलाकार जोड़ी ने पारंपारिक खेल को नया रूप देकर आगंतुकों/दर्शकों को ऐसे अनुभव दिलाए जो मज़ेदार/रसिक भी थे और संजीदा भी । उन्होंने अपनी कलाकृतियों के ज़रिये परम्परा को सामयिक दृष्टि से समझा है । अन्य कलाकृतियों में उन्होंने ब्रिटिश राज की मुंबई के ज़माने का ज़िक्र करते हुए उस वक़्त के इतिहास को कटाक्षभरी नज़रों से देखा है ।

कंट्री ऑफ़ द सी कॅम्प के पश्चिमी हिन्द महासागर के परिसर में चल रही दीर्घकालीन समुद्रीय विश्व परियोजना की झलकियाँ दिखाने के लिए एक प्रदर्शनी थी । इस परियोजना का मुंबई में पहला प्रस्तुतीकरण था । प्रदर्शनी का मुख्य भाग था कॅम्प की दुनिया भर में दिखाई गई फ़िल्म गल्फ़ टु गल्फ़ का भारत में प्रथम प्रदर्शन । इस प्रेक्षण के लिए संग्रहालय के गर्भ भाग के ऐतिहसिक माहौल को सिनेमाई बना दिया गया । कुछ युवा कलाकारों के साथ मिलकर कॅम्प ने ख़ास इस अवसर के लिए एक अनोखा नक़्शा बनाया । इस नक़्शे में एशियाई महाद्वीप और अफ़्रीकन महाद्वीप एक-दूसरे के इतने निकट बताए गए हैं जैसे कि दोनों धरती की विवर्तनिक हलचल की वजह से अलग हो रहे हैं । यह नक़्शा कंट्री ऑफ़ द सी शीर्षक में समाई इन दो महाद्वीपों की कई ऐतिहासिक समानताओं की ओर इशारा करता है ।

     
   
     
 

७००० म्युज़ियम्स: ए प्रॉजेक्ट फ़ोर द रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया
अतुल दोडिया द्वारा रचित

दिसंबर ११, २०१४ -फ़रवरी १०, २०१५

कमलनारायण बजाज मुंबई दीर्घा | औद्योगिक कला दीर्घा | १९ वीं सदी के चित्र दीर्घा | मुंबई का उद्‍गम दीर्घा

७००० म्युज़ियम्स: ए प्रॉजेक्ट फ़ोर द रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया तैलचित्रों, जलरंगचित्रों और मूर्तिकलाकृतियों के संकलनों का व्यापक समूह है । इस प्रदर्शनी में संग्रहालय विविध संग्रहों के बारेमें व्याख्यान थे जिनमें हमारे देश और कलाकृतियों के इतिहास के बारे में,’संग्रहालय’ से जुड़े शब्द भंडार और ’प्रदर्शन’ के मूल अर्थ के बारे में सूक्ष्म टिप्पणियों का समावेश था ।


श्री अतुल की कलाकृतियों में राजनीति,कला और संस्कृति के क्षेत्रों में घटी विभिन्न समकालिक घटनाओं का रसिक रंग घुला हुआ है । अपनी रचनाओं में उन्होंने बड़ी ईक्षा से पौराणिक पात्रों का समकालीन चित्रांकण किया है जो संग्रहालय के नाट्यस्वाँगी प्रतिरूपों और त्रिविम दर्शिकाओं की याद दिलाता है - ख़ासकर संग्रहालय के मध्य भाग में प्रदर्शित काँच की कलाकृतियों में । आपकी रचनाएँ विविध स्रोतों से मिली प्रेरणाओं से अलंकृत हैं, कुछ आपके निजी जीवन से, कुछ फ़िल्मों से तो कुछ बाज़ार में दिखती भड़कीली ’कलाकृतियों’ से भी । आपके काम में उन हस्तियों के अक्स भी झलकते हैं जो आपके लिए बड़े माइने रखते हैं जैसे कि टागोर और कुछ महान कलाकार ।

 
   
 

 

"यह एक कमाल का संग्रहालय है और जिस तरह इसका पुनरुद्धार किया गया है वह कल्पना से परे है । आलीशान इमारत और भीतरी सज्जा इसे वाक़ई अनोखा बनाते हैं और कलाकृतियों के ज़रिये कहानी बताने की प्रदर्शनकला बड़ी दिलचस्प है।"

 

के.के.मित्तल, अतिरिक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय

 

 
   
   प्रदर्शनियाँ  | विशिष्ट कार्यक्रम स्थान  

चंबा रुमाल : लाइफ़ टु ए डाइंग आर्ट/ पुरानी कला को नयी ज़िंदगी


दिसंबर १८, २०१५ - जनवरी २०, २०१६

स्पेश्यल प्रॉजेक्ट स्पेस I और II / विशिष्ट कार्यक्रम स्थान I और II

विन्टर
जुलियन ओपी द्वारा

अगस्त ६, २०१५ - सितंबर १३, २०१५

विशिष्ट कार्यक्रम स्थान I और II

हिमाचल प्रदेश के चंबा प्रान्त में रुमालों पर चित्रकारी अवं कढ़ाई कर के उन्हें सजाने की प्रथा है । पहाडी लघुचित्रण की परंपरा और कढ़ाई के मिश्रण से सजाये गए इन रुमालों को ’कढ़ाई के चित्र’ कहा जाता है । यह कला लुप्त होने को चली थी, जब दिल्ली हस्तकला परिषद ने इस कला को नयी ज़िंदगी देने की चुनौति स्वीकार की । परिषद ने देश-परदेश के विविध संग्रहालयों के प्राचीन चंबा रुमालों के अध्ययन के बाद, कुछ गिने-चुने रुमालों के प्रतिरूप चंबा के पटवों से बनवाये हैं, जो विशिष्ट कार्यक्रम स्थान में प्रदर्शित किये गए ।


दिल्ली हस्तकला परिषद के सहयोग से

श्री जुलियन ओपी की चित्र प्रदर्शनी विन्टर में पचहत्तर चित्रों की श्रृंखला है जो उनकी फ़्रान्स के ग्रामीण श्रेत्र की गश्ती का नतीजा है । इन चित्रों में डच भूदृष्य चित्रकला से लेकर गूगल मॅप्स के स्ट्रीट व्यू जैसे असंकीर्ण प्रभावों का मिश्रण दिखाई देता है । ये चित्र प्राकृतिक दृष्य के विषय पर हो रहे श्री ओपी के अविरत अनुसंधान का श्रेष्ठ नमूने हैं ।


ब्रिटिश कौन्सिल के सहयोग से

   
   
     
 

नेमाइ घोश - सत्यजीत रे एँड बियॉन्ड

अक्‍तुबर ६, २०१५- दिसंबर ८, २०१५   | विशिष्ट कार्यक्रम स्थान I और II

सत्यजीत रे के साथ कई दशकों के संबंधों के कारण छायाचित्रकार नेमाइ घोश वाक़ई इस निष्णात फ़िल्मकार के सर्वोत्कृष्ट जीवनी लेखक साबित हुए हैं । इस प्रदर्शनी में उनके बंगाली और हिन्दी सिनेमा के छायाचित्रों का विस्तीर्ण प्रलेखन प्रदर्शित है, जिसे बहुत ही कम लोगों ने देखा होगा । इसमें पच्चीस वर्षों की अवधि में खींचे गए कलाकारों, दृष्यों, फ़िल्म सेटों और लोकेशनों के कई विशिष्ट छायाचित्रों का समावेश है ।

 

डीएजी मॉडर्न के सहयोग से

 
     

मायग्रेटिंग हिस्टरिज़ ऑफ़ मॉलेक्युलर आयडेन्टिटिज़ - वलय शेन्डे द्वारा

जनवरी १०, २०१५ - फ़रवरी २८, २०१५

स्पेश्यल प्रॉजेक्ट स्पेस I और II / विशिष्ट कार्यक्रम स्थान I और II

सिधपुर: टाइम पास्ट टाइम प्रेज़न्ट सबॅस्टियन कोर्टेज़ द्वारा

मार्च २२, २०१५ - जून ७, २०१५

विशिष्ट कार्यक्रम स्थान I और II

मुंबई स्थित कलाकार वलय शेन्डे की यथार्थाकार कलाकृतियों में हमारे आस-पास की परिस्थितियों और चीज़ों का रूपण है । श्री शेन्डे ट्रकों, भैंसों, टिफ़िन वाहकों/डब्बावालों, स्कूटरों, जैसी रोज़मर्रा की चीज़ों का प्रतीकों के रूप में इस्तेमाल कर के प्रवसन, किसानों की दुर्दशा, जाति-भेद, गरीबी जैसे सामाजिक मसलों पर टिप्पणी करते हैं । खानाबदोश/गृह-निर्माण मज़दूरों से लदी ट्रक का आदमकद धातुशिल्प - ट्रान्ज़िट (पारगमन) - संग्रहालय के प्लाज़ा, यनी चौक में प्रदर्शित किया गया ।

साक्षी गॅलरी के सहयोग से

सिधपुर गुजरात का एक छोटा सा गाँव है । सिधपुर : टाइम पास्ट टाइम प्रेज़न्ट श्रृंखला द्वारा श्री सबॅस्टियन कोर्टेज़ ने छायाचित्रों के ज़रिये बोहरा इस्लामी समाज का गहरा अध्ययन किया है । सिधपुर की सम्पन्न तहज़ीब,विरासत और अनोखी वास्तुकला ने आपकी जिज्ञासा जगाई । आपके छायाचित्रों में यहाँ के युरोपीय प्रभाव से बने घरों और उनकी भारतीय-इस्लामी भीतरी सज्जा के संसर्ग की ख़ूबियाँ साफ़ रूप से नज़र आती हैं ।


तस्वीर गॅलरी के सहयोग से

     
 

 

संग्रहालय के सुंदर स्थान और उसके अद्‍भुत पुनरुद्धार को सराहते हुए मैं आपको बधाई देता हूँ । इसके महत्वाकांक्षी विस्तार की मुझे बड़ी प्रतीक्षा है ।


टॉमस वाय्‌डा, अमरीकन महावाणिज्यदूत

 

 
   
   समाचार  
   
     
 

संग्रहालय विस्तार परियोजना की श्री स्टीवन हॉल द्वारा प्रस्तुति

संग्रहालय ने मौजूदा इमारत के उत्तरी भाग में नया खंड बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी विस्तार परियोजना बनाई है । इस योजना को बृहन्मुंबई महानगरपालिका ने समर्थन दिया है और यह सार्वजनिक-निजी साझेदारी से कार्यान्वित होगी । हमारा लक्ष्य है, इसे मुंबई के समकालीन सांस्कृतिक विकास का प्रधान केन्द्र बनाना । यह विशिष्ट खंड विश्व के अगुआ संग्रहालयों की बराबरी का होगा ।

संग्रहालय विस्तार परियोजना के लिए हुई प्रतियोगिता के विजेता थे श्री स्टीवन हॉल, जिनकी अमरीका के श्रेष्ठ वास्तुशिल्पकारों में गिनती है । आपने ५०० से ज़्यादा प्रेक्षकों के सामने अपना विजेता प्रस्ताव पेश किया । अपने वास्तुशिल्पों में स्थल और प्रकाश का प्रसंगाधीन सूक्ष्मग्राहिता से मेल कर सकने की क्षमता के लिए आप मशहूर हैं । आप सिर्फ़ इमारत के लक्ष्य को ही नहीं, बल्कि स्थानीय अदा और रंगीनी को भी अपनी वास्तुशिल्पकला में बड़ी ख़ूबी से समा लेते हैं । आपको अपने क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित इनामों और पुरस्कारों से नवाजा गया है ।

 
 

 

कोब्रा म्युसियम ऑफ़ मॉडर्न आर्ट के साथ साझेदारी

Tऍम्स्टेल्वीन के कोब्रा म्युसियम ऑफ़ मॉडर्न आर्ट के साथ सहयोग की घोषणा करते हुए हमें बड़ी खुशी होती है । इस सहयोग का उद्देश्य है प्रदर्शनियों और युवाओं के लिए कार्यशालाओं एवं शैक्षणिक कार्यक्रमों की परस्पर लेन-देन । इस साझेदारी के उद्‍घाटन के लिए संग्रहालय ने एक ख़ास कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें ऍमस्टरडॅम के महापौर, श्री एबर्हार्ड वान डेर लान, ऍम्स्टेल्वीन की महापौर, श्रीमति मिरयम वान ’ट वेल्ड, नेदरलँड के महावाणिज्यदूत, श्री जेफ़्री वान लीउवेन, कोब्रा म्युसियम ऑफ़ मॉडर्न आर्ट की कार्यकारी निदेशिका, श्रीमति एल्स ऑटन्हॉफ़ और ऍमस्टरडॅम मार्केटिंग के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी, श्री फ़्रान्ज़ वान डेर ऍवर्ट उपस्थित थे ।

इस समारोह में भारत में पहली बार ऍमस्टरडॅम के रॉयल कॉन्सर्ट ऑपेरा के संगीतकारों ने कार्यक्रम पेश किया । इस अवसर पर श्री कॅरेल ऍपेल की एक कलाकृति भी अनावृत और प्रदर्शित की गई ।


श्री कॅरेल ऍपेल कोब्रा के संस्थापक सदस्य हैं । कोब्रा की स्थापना सन १९४८ में हुई । यह नाम तीन सदस्य शहरों की संक्षिप्ति है - कोपनहेगन, ब्रसेल्स और ऍमस्टरडॅम । बीसवीं सदी का कला के क्षेत्र का यह अंतिम युरोपीय अग्रगामी आंदोलन सन १९४८ से सन १९५१ तक सक्रीय था । इस दरमियान, कई कलाकारों ने साथ आकर युरोप के द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के माहौल पर अपनी कलाकृतियों द्वारा सामाजिक और राजनैतिक मुद्दों पर आलोचना की, कला की भूमिका क्या होनी चाहिए इस सवाल पर नई नज़र से सोचा और युरोपीय समाज को अर्थपूर्ण तरीक़ों से विश्व युद्ध के मानसिक आघातों से निबटने में मदद करने की कोशिश की ।

   
 

पीजी डिप्लोमा /स्तानकोत्तर सनद

एक वर्ष की अवधि के हर सप्ताहांत चलाये जाते इस डिप्लोमा कोर्स/सनद पाठ्यक्रम का यह पाँचवा वर्ष है । इसमें सन १८५० से आज तक के भारतीय कला इतिहास का सैद्धांतिक और आलोचनात्मक स्तर पर अध्ययन किया जाता है । यहाँ छात्रों को भारत के इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति,लिंग-भेद और संस्कृति शिक्षा के परिपेक्ष्य में कला का इतिहास सिखाया जाता है । यहाँ उन्हें भारतीय कला पर हुए नये लेखन को विश्व के आधुनिक और समकालीन कला इतिहास के संदर्भ में समझने का भी मौक़ा मिलता है । जनवरी २०१४ से इस पाठ्यक्रम में एक नया विषय -प्रदर्शन प्रबंध - भी सिखाया जाता है । इस संरूप की बदौलत छात्रों को विषय वस्तु सीखने के साथ-साथ संग्रहालय में हो रहे प्रदर्शन और और कला-संवर्धन का वास्तविक अनुभव मिलता है ।

 

अधिक जानकारी के लिए

 
     
   
 

भारतीय कला मेला

जनवरी २०१५

हमारा संग्रहालय पहली बार दिल्ली में आयोजित इंडिया आर्ट फ़ेअर में सहभागी हुआ । हमने यहाँ वास्तुशिल्पकार स्टीवन हॉल द्वारा रचित संग्रहालय के नये खंड की संकल्पना प्रदर्शित की । इंडिया आर्ट फ़ेअर देश का सब से बड़ा कला कार्यक्रम है जिसका मज़ा लेने एक लाख से ज़्यादा लोग आते हैं । अतः हमारी उपस्थिति की वजह से संग्रहालय और यहाँ आयोजित कार्यक्रमों के बारे में बड़ी मात्रा में जानकारी प्रसारित हुई ।

 
     
 

क्युरेटर्ज़ हब / संग्रहालयाध्यक्षकों का अड्डा

 
 

श्रीमति तसनीम ज़कारिया मेहता, डॉ.भाऊ दाजी लाड संग्रहालय की प्रबंधक न्यासी एवं मानद्‌ निदेशिका को कोलकाता में २३-२५ जुलै, २०१५ के दौरान आयोजित एक्स्पेरिमेन्टर क्युरेटर्ज़ हब में, यानी प्रायोगिक संग्रहालयाध्यक्षकों के अड्डे में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया । श्रीमति मेहता के व्याख्यान का शीर्षक था, इनसर्जन्ट ऍक्ट्स, यानी बाग़ी हरकतें । व्याख्यान के दौरान आपने संग्रहालय की अविरत समकालीन कला प्रदर्शनी श्रृंखला एन्गेजिन्ग ट्रॅडिशन्स, यानी परंपरा के दायरे में, प्रस्तुत की।

 
     
   
     
 

प्रस्तुतीकरण से ...

 

"संग्रहालय के उपनिवेशी अवतार में यहाँ की स्थानीय हस्तियों को महत्त्व दिया जाता था और यहाँ प्रदर्शित कलाकृतियों के स्त्री और पुरुष रचनाकारों की उपेक्षा की जाती थी; कुछ (पाश्चात्य) कला प्रथाएँ नवाजी जाती थीं और स्थानीय कलाकार और उनकी शैली को रंगभेद के आधार नीचा माना जाता था और इस धारणा से ठुकराया जाता था कि उनमें उच्च कला या ललित कला को समझने की दिमाग़ी काबिलियत है ।"

 

"स्थानीय कला प्रथा कला साधना को अगुआ स्थान देकर इस ऐतिहासिक असंतुलन को दुरुस्त करना हमारे संग्रहालय का उद्देश्य है । इसी दिशा में हमारी कला श्रृंखला एन्गेजिन्ग ट्रॅडिशन्ज़ के अंतर्गत कलाकारों को आमंत्रित करते हैं कि वे आगे बढ़कर इस इतिहास को ललकारें और छीनी और मिटाई गई स्थानीय कलाकारों की पहचान को नया जोश बख़्शे । सुदर्शन शेट्टी, जितिश कल्लट, शीबा छाछी, एल.एन. तल्लुर, अतुल दोडिया, जैसे प्रतिष्ठित कलाकार एवं कॅम्प जैसी संस्थाओं ने इस श्रृंखला में पहलकदमी की है ।"

 
     
 

 

"इस जगह से जाते वक़्त बड़ी मायूसी का एहसास होता है । यहाँ कितना भी समय बिताऊँ, पेट नहीं भरता ! हर वक़्त दिल जीत लेती है यह जगह ।"


कृष्ना मेहता, डिज़ाइनसाज़

 

 
     
   शिक्षा उपक्रम


कहानी कार्निवल २०१५

सन २०१५ में डॉ.भाऊ दाजी लाड संग्रहालय ने कहानी कार्निवल ट्रस्ट के साथ साझेदारी में एक अनोखे बाल साहित्य उत्सव का आयोजन किया । इसे वर्ष में चार बार प्रस्तुत किया जाता है । कहानी कार्निवल ट्रस्ट एक लाभ निरपेक्ष संस्था है जो बच्चों में वाचन का आनंद जगाने की कोशिश करती है और किताबों, नाटकों, कला, संगीत और नृत्य के माध्यम से कहानियों में जान उँडेलती है । संग्रहालय ने इस हेतु एक ऐसा मंच उपलब्ध किया है जहाँ बच्चे, शिक्षक,पालक, लेखक और कलाकार संग्रहालय में या स्कूलों में ऐसे कार्यक्रमों में शामिल हो सकें ।

 

जनवरी संस्करण

इस साझेदारी की शुरुआत १६ और १७ जनवरी के दौरान एक शानदार कार्यक्रम से हुई । कार्यक्रम में कला के विविध रूपों का बहुविषयक प्रस्तुतीकरण था - अतुल दोडिया की प्रदर्शनी से प्रेरित मेरा संग्रहालय, नर्तिका और कथावाचक मिराबेल डि कुन्हा द्वारा गजपति गणपति का सजीव वाचन, केटी बागली के साथ रानी बाग़ की सैर और पुनरुपयोग का महत्त्व बतानेवाली एक ख़ास लघु-नाटिका, धरा की कहानी । दो दिन के इस कार्यक्रम में कुल मिलाकर १५०० से ज़्यादा लोग शामिल हुए ।



अप्रैल संस्करण

अप्रैल २६,२०१५ के रोज़ कहानीकथन, छोटे-छोटे अभिनय और कार्यशालाओं से खचाखच छोटा कहानी कार्निवल/कथोत्सव आयोजित किया गया । इस दौरन हुई एक कार्यशाला विन्डोज़ में बच्‍चों ने अपने शहर की पुनःकल्पना कर के गढी हुई कहानियों से बनाया हुआ कोलाज़, यानी समुच्चित चित्र, अब संग्रहालय कॅफ़े में प्रदर्शित है ।

 

नवम्बर संस्करण

कहानी कार्निवल / कथोत्सव २०१५ / बाल साहित्य उत्सव २०१५ के तीसरे संस्करण का विषय था, भाषाएँ । यह २८-२९ नवम्बर २०१५ के दौरान आयोजित किया गया । इन दो दिनों में संग्रहालय का प्लाज़ा, यानी चौक, नृत्य, संगीत, कहानी-कथन और अन्य कलाओं से गूँज उठा । अलग-अलग भाषाओं से समाविष्ट कार्यशालाओं में कई गतिविधियाँ थीं - लेखकों द्वारा कहानी-वाचन, रोज़मर्रा की या बँटोरी गई चीज़ों के इस्तेमाल से कहानी-कथन, कठपुतलियों का निर्माण, बाग़बानी, हास्य चित्रकथाओं का निर्माण, आदि । ५०० से ज़्यादा लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए ।

 

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सार्वजनिक व्याख्यानमाला

विशिष्ट व्याख्यान

शहर की जनता के साथ विविध सांस्कृतिक मसलों पर विचारों की लेन-देन करने के उद्देश्य से हर शनीचर को संग्रहालय सार्वजनिक व्याख्यान आयोजित करता है । सनद पाठ्यक्रम के शिक्षक गण में जाने-माने कलाइतिहासकार, अन्वेषक, कलाकार हैं जो इन अवसरों पर व्याख्यान देते हैं । इस वर्ष के कुछ व्यक्‍ता थे - श्री शुक्ल सावंत, जिन्होंने शांतिनिकेतन कलाकारों के निसर्गचित्र रूपण का विश्लेष्ण किया; प्रा.पारुल दवे-मुखरजी, जिन्होंने कलाकार,नृवंशविज्ञान और पुरालेखों को जोड़ती कड़ियों के बारे में बातें कीं; और प्रा.ज्योतिन्द्र जैन, जिन्होंने कला के क्षेत्र में एवं धार्मिक विधियों में देवी के मूर्तमंत स्वरूप कैसे थे और बाद के दृष्य निरुपण कैसे थे इसका तुलनात्मक विश्लेषण किया ।

संग्रहालय में सार्वजनिक व्याख्यानों के लिए कई जाने माने अंतरराष्ट्रीय कला विचारक और विद्वान भी आमंत्रित किए जाते हैं । इथिओपियावासी श्रीमति मेस्केरेम आसेगुए्द के यहाँ आने से हमें बहुत खुशी हुई । आप एक संग्रहाध्यक्षिका, मानववैज्ञानिका एवं लेखिका हैं और आपने पर्यावरण के मसले पर ख़ास काम किया है । आप अडिस अबाबा और हार्ला के एक छोटे कसबे में स्थापित कलाकारों के लिए बनाए निवास स्थान,ज़ोमा कन्टेम्पररी आर्ट सेन्टर,ज़ेड.सी.ए.सी, की संस्थापिका भी हैं और आपने समकालीन अफ़्रीकन कला का जागतिक स्तर पर प्रदर्शन करने के अपने अनुभव इस व्याख्यान में बयान किये । इसके अलावा ब्रिटिश म्युज़ियम के डॉ. अर्विन्ग फ़िन्कल ने पटल खेलों के इतिहास पर दिलचस्प व्याख्यान दिया,और उत्तरी आयर्लन्ड के सीसीए डेरी-लंडंनबेरी के निदेशक श्री मॅट पॅकर ने उत्तरी नॉर्वे और आयर्लन्ड की समकालीन प्रबंधकीय कार्यप्रणाली पर बातें की ।

   

सार्वजनिक सैर

प्रौढ़ कलाशिक्षा

हर शनिवार-रविवार को प्रबंधकीय गुट के सदस्य संग्रहालय की निःशुल्क सैरों का संचालन करते हैं । तरह-तरह के लोग इसका लाभ लेते हैं - हर उम्र के, हर स्तर के और अलग-अलग दिलचस्पी रखनेवाले वाले लोग । सैर के दौरान यहाँ के संग्रह, संग्रहालय के इतिहास, समकालीन प्रदर्शनियों और इमारत के वास्तुशिल्प से उनकी पहचान करवाई जाती है । अंग्रेज़ी, मराठी और हिन्दी में संचालित इन सैरों के लिए पहले से नाम लिखवाने की आवश्यकता नहीं ।


इन निःशुल्क सैरों के अलावा, पहले से नाम लिखवाकर शुल्क अदायगी करने पर व्यक्तिगत गुट-सैरों का आयोजन भी किया जाता है । मुंबई का इतिहास, विकास और सांस्कृतिक विरासत के विषय पर संचालित सैरें सब से लोकप्रिय हैं । व्यक्तिगत गुट संग्रहालय में जारी ख़ास प्रदर्शनियों की खूबियाँ समझानेवाली सैरें भी आरक्षित कर सकते हैं ।


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महिने में एक दिन संग्रहालय अभ्यस्त युवा व्यावसायिकों को प्रौढ़ कलाशिक्षा कार्यशालाएँ संचालित करने के लिए आमंत्रित करता है । कार्यशाला में हिस्सा लेनेवालों को उनके कौशल्य का लाभ तो मिलता है ही, साथ-साथ कुछ नया आज़माने की प्रेरणा मिलती है और नयी कला शैली सीखने का आनंद भी प्राप्त होता है । पिछले साल हास्य चित्रकथा निर्माण, शॅडो बॉक्स निर्माण, कुम्हारकाम, मिट्टी से प्रतिरूप निर्माण , सुलेखन,और व्यंगचित्र रेखांकन, आदि को बढ़िया प्रतिक्रिया मिली । व्यावसायिक छायाचित्रकार द्वारा संचालित छायाचित्रण पर केंद्रित सांस्कृतिक विरासत की सैरें भी बड़ी लोकप्रिय साबित हुईं ।


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युवा पीढ़ी के लिए कार्यशालाएँ

बच्चों के लिए कार्यशालाएँ

विशिष्ट क्रियाकलाप

 
 

संग्रहालय विद्यालयीन और अन्य युवा के लिए संग्रहालय की व्याख्यात्मक सैरें और कार्यशालाएँ आयोजित करता है, जहाँ वे संग्रहालय के इतिहास,संग्रह और प्रदर्शिनियों के बारे में गहरी समझ पा सकें । मुंबई के इतिहास और विरासत के विषय पर संचालित सत्र बहुत लोकप्रिय हैं; वैसे ही डॉ. भाऊ दाजी लाड संग्रहालय के अध्ययन द्वारा सजावटी कला प्रथाएँ और समकालीन कला प्रणाली समझने के सत्र भी लोकप्रिय हैं ।


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स्कूली और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के बच्चों के लिए संग्रहालय सैर और चर्चा का आयोजन करता है । इन सैरों को यहाँ प्रदर्शनियों या विशिष्ट संग्रहों के साथ जोड़ा जाता है और बाद में उससे संबंधित रचनात्मक गतिविधि संचालित की जाती है । हमारे स्थायी संग्रहों से जुड़ी लोकप्रिय कार्यशालाएँ हैं - चाँदीकाम, कुम्हारकाम, जगहों और यादों का मानचित्रांकण, रागमाला चित्रकला और कठपुतली निर्माण ।


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संग्रहालय के स्थायी संग्रहों और विशिष्ट समकालीन प्रदर्शनियों को देखकर बच्चों में आलोचनात्मक और रचनात्मक कौशल पैदा करने के हेतु से इस क्रियाकलाप के अंतर्गत उन्हें ख़ास बनाए कार्यपत्रक दिए जाते हैं और सैर करते वक़्त या कार्यशालाओं के ज़रिये प्रदर्शित कलाकृतियाँ समझाई जाती हैं । संग्रहालय द्वारा आयोजित कार्यशालाएँ विविध प्रेक्षकों को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं । कार्यपत्रक अंग्रेज़ी, हिन्दी और मराठी भाषा में उपलब्ध किए जाते हैं ।


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संग्रहालय में गर्मियों का मज़ा !

खेलों का मेला

डायन फ़ेर्लात्‍ते के संग संवादात्मक कहानी-कथन

 
 

२०१५ की मई महिने की छुट्टियों में संग्रहालय में हर शनिवार-इतवार को पूरे परिवार के लिए ढेर सारी मज़ेदार गतिविधियाँ आयोजित की गईं । इस दौरान बच्चों ने प्रदर्शनियाँ देखीं,तरह-तरह के खेल खेले, विरासत पद-यात्रा में शामिल हुए और कठपुतली निर्माण, कला संरक्षण, कुम्हारकाम, मानचित्रण, त्रिविम प्रदर्शिका निर्माण, जैसी विभिन्न क्रियाएँ आज़माने का मौक़ा भी पाया ।


आगामी कार्यक्रमों के बारे में जानने या अधिक जानकारी पाने के लिए कृपया education@bdlmuseum.org
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022-23731234 पर फ़ोन करके पूछें ।


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मई २ से ३० २०१५ के दरमियान जब संग्रहालय में श्री ठुकराल और श्री टाग्रा की प्रदर्शनी गेम्ज़ पीपल प्ले चल रही थी,तब सुसंगत मौक़ा देखकर हमने एक खेलों का मेला आयोजित किया । आगंतुक ठुकराल और टाग्रा के विशिष्ट रूप से निर्मित वॉक ऑफ लाईफ़, वर्बल कबड्डी और अनोखे रूप के टेबल टेनिस जैसे खेलों में शामिल हुए । संग्रहालय के प्लाज़ा,यानी चौक का खेल के मैदान में रूपांतर हो गया और यहाँ हमारे संग्रह के पारंपारिक मैदानी और कक्ष खेलों से प्रेरित खेल खेले गये - ख़ासकर साँप-सीढ़ी का महाकाय खेल ।

संग्रहालय ने ८ सितंबर,२०१५ के रोज़ २००८ में ग्रॅमी पुरस्कार के लिए नामशुदा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी-मानी कहानीकार श्रीमति डायन फ़ेर्लात्‍ते का संवादात्मक कहानी-कथन कार्यक्रम पेश किया । डायन साहिबा का मानना है कि एक-दूसरे की कहानियाँ सुनने से और एक-दूसरे को कहानियाँ सुनाने से हम न सिर्फ़ एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जान पाते हैं पर हमारी परस्पर समझ भी बढ़ती है । १०० से ज़्यादा लोग - बच्चे और बड़े - इस कार्यक्रम में उपस्थित थे ।

 

 
   

बाल फ़िल्म उत्सव

कहानी रचना

हर महिने एक इतवार को बच्चों के लिए ख़ास फ़िल्मों के प्रेक्षण की शुरुआत जुलै महिने में हुई । इस उत्सव में ऐसी फ़िल्में बताई जाती हैं जो पालकों को भी उतनी ही पसंद आये जितनी बच्चों को । ये फ़िल्में ऍनिमेशन और नाट्यात्मक रूप से विश्वभर की कहानियाँ बताती हैं । इन फ़िल्मों का प्रेक्षण कॅनडा के वाणिज्यदूतावास के सहयोग से किया जाता है ।


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संग्रहालय में प्रदर्शित कलाकृतियों,नक्शों और त्रिविम दर्शिकाओं की मदद से ३० अगस्त,२०१५ के रोज़ कई बच्चों ने मुंबई शहर के इतिहास के बारे में जाना । उन्होंने अपनी कल्पना से पात्र, कथानक और माहौल रचकर अनोखी ऐतिहासिक कहानी बनायी । यह तिमाही कार्यक्रम द राइटर्स बग के सहयोग से आयोजित किया जाता है ।

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"मुझे बहुत खुशी है कि मैं आख़िरकार भा.दा.ला. संग्रहालय देखने आई - हालांकि लंबे अरसे से यहाँ आने की इच्छा थी । यह संग्रहालय तो सचमुच मेरी अपेक्षा से बढ़कर निकला ।"


रत्‍ना पाठक शाह, अभिनेत्री

 

   
   सामाजिक संपर्क  

 

मुवीज़ ऍट द म्युज़ियम अर्थात संग्रहालय में फ़िल्म प्रदर्शनी

संग्रहालय में स्थित शिक्षा केन्द्र में नियमित रूप से संग्रहालय में फ़िल्म प्रदर्शनी नामक एक फ़ुर्तीला फ़िल्म कार्यक्रम आयोजित किया जाता है । इस कार्यक्रम की शुरूआत ३ अप्रैल २०१५ के दिन हुई । इसमें हर माह एक फ़िल्म दिखाई जाती है । दिग्दर्शक-चलचित्रकार, श्री अवजीत मुकुल किशोर और वास्तुकार-नागरी रचनाकार, श्री रोहन शिवकुमार इस कार्यक्रम का आयोजन करते हैं । इसमें वृत्तचित्र, कथाचित्र, सजीवचित्र (animation), दृष्य कला(visual art) चित्र जैसी विभिन्न शैलियों में बनी फ़िल्मों एवं विडियो का समावेश होता है । समय-समय पर फ़िल्म, कला और शिक्षा के क्षेत्रों से जानकार व्यक्तियों को फ़िल्म प्रेक्षण के बाद आयोजित चर्चा के लिए आमंत्रित किया जाता है । इस कार्यक्रम में प्रवेश निःशुल्क है ।


कार्यक्रम का पहला प्रेक्षण श्री दादासाहब फालके पर केन्द्रित था । दादासाहब पर आधारित एक लघु चलचित्र बताकर कार्यक्रम की शुरूआत हुई और उसके बाद उनकी जीवनी पर श्री कमल स्वरूप द्वारा बनाई गई रंगभूमि नामक फ़िल्म बताई गई । श्री स्वरूप ने अपनी इस रचना के बारे में प्रेक्षकों को बताया और पश्चात हुई चर्चा में भी शामिल हुए । इस कार्यक्रम में २०० से ज़्यादा प्रेक्षक उपस्थित थे ।


१ मई, महाराष्ट्र दिन के अवसर पर जाने-माने दिग्दर्श्क श्री वी.शांताराम की दो फ़िल्में बताई गईं । प्रेक्षण के पश्चात फ़िल्म इतिहासकार प्रा. सुरेश छाब्रिया के साथ प्रेक्षकों ने इन फ़िल्मों पर चर्चा की । इस पश्चात हुए कुछ प्रेक्षण और संबंधित महमान व्यक्ता इस प्रकार थे - लेनी राइफ़ेन्स्थाल की ऑलिम्पिया ज्योर्ज होसे के साथ, आशिम अहुवालिया की ख़ास मदद से अन नोन टेरिटरिज़:रॅडिकल सिनेमा-१९६३-२०१२, होमी वाडिया की डायमंड क्‍वीन पारोमिता वोहरा के साथ पासोलिनी एवं लुई माले की नोट्‍स फ़ॉर ए फ़िल्म ऑन इन्डिया और फ़ॅन्टम इन्डिया गिरीश शाहणे के साथ । फ़िल्म कार्यक्रम में औसतन्‌ ८० प्रेक्षक उपस्थित रहते हैं ।

     
 
 

मुंबई गॅलरी वीकएन्ड अर्थात मुंबई दीर्घा सप्ताहांत

फ़ोकस फ़ोटोग्राफ़ी फ़ेस्टिवल अर्थात फ़ोकस फ़ोटोग्राफ़ी उत्सव

अध्ययन गोष्ठी

 
 

जनवरी १४-१८ २०१५ के दरमियान संग्रहालय में मुंबई गॅलरी वीकएन्ड, यानी मुंबई दीर्घा सप्ताहांत आयोजित किया गया । यह कार्यक्रम श्री अतुल दोडिया की प्रदर्शनी ७००० संग्रहालय से संलग्न था । श्री दोडिया ने कला के क्षेत्र से निमंत्रित मेहमानों को प्रदर्शित कलाकृतियों की सैर करवाई । उसके बाद संग्रहालय निदेशिका श्रीमति मेहता और श्री दोडिया के बीच विचारों की लेन-देन हुई ।

फ़ोकस फ़ोटोग्राफ़ी फ़ेस्टिवल,यानी, फ़ोकस फ़ोटोग्राफ़ी उत्सव २०१५ के लिए संग्रहालय ने जगह दी । मार्च १२ - अप्रैल २०१५ के काल में कॉल फ़ॉर एन्ट्रिज़ नामक प्रदर्शनी म्युज़ियम प्लाज़ा में आयोजित की गई। क्रॉसओवर्स विषय पर प्राप्त १२६ अंतरराष्ट्रीय निवेदनों में से फ़ोकस की निर्णायक समिति ने २० छायाचित्रकार चुने । सौ एक छायाचित्र फ़ोकस ने बनवाए विशिष्ट स्टॅन्डों पर प्रदर्शित किए गए । प्रदर्शनी की विषय-वस्तु पर आधारित सैरें और चर्चासत्र भी इस कार्यक्रम का हिस्सा थे ।

फ़रवरी २२ से अप्रैल ७,२०१५ में प्रदर्शित कलाकार गुट कॅम्प की समुद्रीय-विश्व प्रदर्शनी ऍज़ इफ़ - III कंट्री ऑफ़ द सी से प्रेरित होकर संग्रहालय ने उसी कालावधि मेंव्यू फ़्रॉम द बोट, यानी नौका से दिखता नज़ारा नामक अध्ययन गोष्ठी आयोजित की । भारत और यु.के. से कई नामांकित कलाइतिहासकार और विद्वानगण इस गोष्ठी में शामिल हुए।

 
   
 
 

कुमार शाहानी की विरासत

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिन उत्सव

विश्व विरासत दिन उत्सव

 
 

संग्रहालय में कुमार शाहानी की पिछले कुछ वर्षों में न दिखाई गई फ़िल्मों का छोटा सा गतावलोकन और आपकी किताब, द शॉक ऑफ़ डिज़ायर ऍन्ड अदर एसेज़ का उद्‍घाटन ५ दिसंबर २०१५ के रोज़ हुआ । पूरे दिन के इस कार्यक्रम में शाहानी की फ़िल्में, तरंग, माया दर्पण और ख़याल गाथा का प्रक्षेपण हुआ और उस पश्चात हुई गोष्ठी में आशिष राजाध्यक्ष, रजत कपूर, अरुण खोपकर और प्रभा महाजन ने दर्शकों के साथ बात-चीत की ।


शाहनी की किताब, द शॉक ऑफ़ डिज़ायर ऍन्ड अदर एसेज़ का उद्‍घाटन श्रीमति तसनीम ज़कारिया मेहता, श्री अरुण खोपकर और श्री आशिष राजाध्यक्ष ने साथ मिलकर किया । इस अवसर पर श्री कुमार शाहानी स्काइप के माध्यम द्वारा मौजूद थे । २०० से ज़्यादा प्रेक्षक इस कार्यक्रम में सहभागी हुए ।

११ अक्‍तुबर २०१५ के रोज़ संग्रहालय मेंअंतरराष्ट्रीय बालिका दिन मनाया गया । इस अवसर पर दो फ़िल्में दिखाई गईं - हुआनिता पीटर्स की हान्नाज़ स्टोरी और पिएर-लुक ग्रॅन्यों की मॉली इन स्प्रिन्गटाइम । हान्नाज़ स्टोरी एक ऐसी ११ वर्षीय लड़की के बारे में थी जो मानती है कि हर कोई बात कर सकना मुमकिन है,और अपने इस अद्‍भुत आत्मविश्वास से बड़ों को भी प्रेरित करती है । मॉली इन स्प्रिन्गटाइम ऍनिमेशन शैली में बनी थी । इन फ़िल्मों का प्रेक्षण कॅनडा के वाणिज्यदूतावास के सौजन्य से हुआ ।

१८ अप्रैल २०१५ को विश्व विरासत दिन के अवसर पर जाने-माने संरक्षणीय वास्तुशिल्पकार और इनटॅक,मुंबई विभाग के सह------ विलास दिलावरी ने छ्त्रपति शिवाजी टर्मिनस की पदयात्रा का संचालन किया । पहले विक्टोरिया टर्मिनस के नाम से जाना जानेवाला यह टर्मिनस विश्व विरासत स्थल है । सहभागियों ने १९ वीं सदी की इस अपूर्व इमारत की वास्तुशिल्पकला निहारी और इसका इतिहास समझा । इस इमारत में गॉथिक नवचेतना और पारंपारिक भारतीय वास्तुशिल्प शैली का जो मिश्रण है वह १९ वीं सदी मुंबई ख़ासीयत है । यह इमारत इस मिश्रण की एक बेहतरीन मिसाल है । कार्यक्रम का अंत रेल संग्रहालय की सैर से हुआ जहाँ सहभागियों को टर्मिनस का संक्षिप्त इतिहास जाननेअको मिला । इस सैर का आयोजन इनटॅक,मुंबई विभाग द्वारा किया गया था ।

 

 
   

गोष्ठी और प्रक्षेपण

कलाकृतियों के विस्थापन पर कार्यशाला

३ सितंबर २०१५ के रोज़ टेट शॉट्स का प्रक्षेपण और तदपश्चात गोष्ठी का संचालन किया गया । ये समकालीन ब्रिटिश कला पर बनी लघु फ़िल्में थीं । प्रक्षेपण से पहले श्रीमति मेहता और पश्चिम भारत की ब्रिटिश काउन्सिल की निदेशिका श्रीमति शॅरन मेमिस ने प्रेक्षकों के साथ श्री जुलियन ओपी की संग्रहालय में चल रही प्रदर्शनी विन्टर पर गोष्ठी का संचालन किया ।

ब्रिटिश काउन्सिल की दृष्य कला कार्यशाला के उप व्यवस्थापक श्री डेविड गार्नेट ने कलाकृतियों की स्थापना और विस्थापन पर एक अनौपचारिक सत्र संचालित किया । उन्होंने प्रदर्शनी संकल्पना, स्थापनापूर्व नियोजन और तैयारी के बारे में बातें कीं और कलाकृतियों की देखभाल के बारे में भी बताया. कई दीर्घा संचालकों, संग्रहालयाध्यक्षों और विद्यार्थियों ने इस सत्र का लाभ लिया ।

   

भायखला की विरासत पदयात्रा

भुलेश्वर की विरासत पदयात्रा

संग्रहालय और इनटॅक साथ मिलकर नियमित रूप से विरासत पदयात्राएँ आयोजित करते हैं । भायखला इलाके की पदयात्रा का संचालन विरासत विशेषज्ञा अलिशा सदिकोट ने किया । सहभागियों ने मझगाँव द्वीप की मुलाकात ली (जो मुंबई के मूल सात द्वीपों में से एक है)और उसका महत्त्व समझा । इस इलाके पर समय के साथ कई वास्तुशिल्प शैलियों की छाप उभरी है और नानाविध जमातों ने बसेरा किया है । सहभागियों को इन जमातों की कुछ दिलचस्प यादें और क़िस्से सुनने का भी मौक़ा मिला । उन्होंने श्री डेविड ससून का पुराना घर भी देखा और यह भी जाना कि हमारे संग्रहालय का पुराना नाम विक्टोरिया और ऍल्बर्ट म्युज़ियम था ।

भुलेश्वर की सांस्कृतिक विरासत और वास्तुशिल्प की जानकारी देने के आशय से आयोजित पदयात्रा का संचालन वास्तुशिल्पकार व शहरी अन्वेषक, श्री कायवान मेहता ने किया । श्री मेहता ने इस इलाके पर विस्तारित अध्ययन और अनुसंधान किया है और इसके बारे में एलिस इन भुलेश्वर नामक किताब भी लिखी है । आपने पदयात्रियों को यहाँ के मूल कसबे के बारे में जानकारी दी और उन पेचीदा घटकों के बारे में बताया जो इस इलाके की विरासत को असुरक्षित बनाते हैं । इस यात्रा का आयोजन इनटॅक ने किया था ।

     

 

"यह जगह सचमुच असाधारण है और यहाँ प्रदर्शित संग्रह मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे देश और विश्व के आगंतुकों को इस शहर की महान विरासत की झलकियाँ पाने का मौक़ा देते हैं । भाँति-भाँति के, हर सामाजिक वर्ग के इतने सारे लोगों को संग्रहालय का और कलाकृतियों का दिल से मज़ा लूटते देखकर मैं चकित रह गई । वाह वाह ! कला को आम लोगों तक कैसे पहुँचायें यह बात हम सब वाक़यी इस संग्रहालय से सीख सकते हैं । संग्रहालय की उत्कृष्ट सैर के लिए भी धन्यवाद ।"


माया कोव्स्काया, कला समीक्षक और संग्रहालयाध्यक्षा

 

   
 


फ़्रेन्ड्स ऑफ़ द म्युज़ियम अर्थात संग्रहालय के मित्र

हमें फ़्रेन्ड्स ऑफ़ द म्युज़ियम, यानी,संग्रहालय मित्र/ संग्रहालय के संगी साथी कार्यक्रम की शुरुआत की घोषणा करते हुए बहुत खुशी होती है । इस कार्यक्रम का उद्देश्य है इस शहर के कला और सांस्कृतिक इतिहास से दर्शकों का नाता जोड़ना । इस कार्यक्रम में आप व्यक्तिगत, पारिवारिक या संस्थानिक रूप से सदस्य बन सकते हैं । हर तरह की सदस्यता से कुछ सुविधाएँ और फ़ायदे जुड़े हुए हैं । इस कार्यक्रम के अंतर्गत संग्रहालय इच्छुक व्यक्तियों को कला संस्कृति से वैयक्तिक रिश्ता जोड़ने का मौक़ा देता है और आशा करता है कि संग्रहालय के ये संगी साथी यहाँ के कार्यक्रमों का समर्थन करेंगे और इस शहर में हो रहे सांस्कृतिक संवाद में नयी चेतना ऊँडेलने में योगदान देंगे ।

 

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"मैं आपका दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । अब तक मैं यहाँ क्यों नहीं आया यह सोचकर सच कहूँ तो ताज्जुब के साथ-साथ शर्मींदगी का एहसास होता है ! मैं ज़रूर वापिस आऊँगा । फिर एक बार शुक्रिया ।"


नसीरुद्दीन शाह, अभिनेता

 

   
   
 

संग्रहालय बिक्री केन्द्र

संग्रहालय के बिक्री केन्द्र में भाँति-भाँति के अवनवे उत्पादों से बिल्कुल नया रूप मिला है । कुछ उत्पाद हैं - कलाकारों पर आधारित किताबें; १९ वीं सदी में प्रचलित व्यवसायिकों की चित्रपुस्तिकाएँ जिसमें आया, रामूसी (चौकीदार),मछुआरे,आदि के चित्र हैं; और पुराने उत्पादों के इश्तेहार दिखाते पोस्टकार्ड । राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कारीगर ने बनाई काँस्य गणेश मूर्ति किसी भी घर के देवालय में या किसी मेज़ पर रखने के लिए या उपहार देने के लिए सही है । मुंबई के इस चहीते देवता की मूर्ति सदियों पुरानी मोम का ढाँचा इस्तेमाल करने की तकनीक से बनाई गई है । और भी कई नये उत्पाद जल्द ही आपके लिए उपलब्ध होंगे, जैसेकि काग़ज़ दाब के आकार की घडियाँ, कापियाँ, फ़्रिजचुंबक, टिकलियाँ, चाभी-छल्ले, टी-शर्ट और क्या कुछ !

 

 

"संग्रहालय की कला शिक्षा के प्रति निष्ठा और यहाँ के अद्‍भुत संग्रहों और प्रदर्शनियों के विवेचन के प्रति वचनबद्धता से मैं बहुत ही प्रभावित हूँ. और इन सब के लिए ऐसी ख़ूबसूरत जगह होना तो सोने पर सुहागा है !"

 

रिबेक्का मॅक्‌गिनिस, द मेट्रोपॉलिटन म्युज़ियम ऑफ़ आर्ट, न्यू यॉर्क

 

     
 संरक्षण

 

ताम्र पदक ’१८६२ लॉन्डिनी ऑनोरिस कॉज़ा, हमारे संग्रह से।

सन २०१५ में संग्रहालय के संरक्षण केन्द्र में कई चीज़ों, दुर्लभ किताबों और चित्रों की बड़े जतन और बड़ी नज़ाकत से मरम्म्त की गई । इनमें से एक महत्त्वपूर्ण चीज़ थी सन१८६२ का एक ताम्र पदक । उभरी हुई नक्काशीवाले तांबे का इस गोल पदक का मूल तांबई रंग धूल-कचरे से, ऊँगलियों के धब्बों से और वातावरणीय प्रदूषण से कालामैला हो गया था । पहले इसे कई बार बाज़ार में उपलब्ध सफ़ाई के द्रव्यों से रगड़ा गया था; परिणामस्वरूप, इन द्रव्यों और क्षार की हरी सी परतें भी पदक के खाँचों में जम गई थीं ।

 

उपचार: सफ़ाई प्रक्रिया : लिखित और छायाचित्रित प्रलेखन के बाद ख़ास बनाए विलायक द्रव से पदक का संक्षारण निकाला गया । सूक्ष्मदर्शी यंत्र के जरिये पदक को देखकर सभी खाँचों में से कचरे की परतें बड़े जतन से खु्रेदकर साफ़ की गईं ।

तदपश्चात, पदक को नर्म नायलॉन ब्रुश से झाड़ा गया और फिर एक बार विलायक द्रव से साफ़ किया गया । पूर्णतः ----- और चमकते पदक को संरक्षणीय द्रव की परत लगाई गई ताकि वह फिर से ऊँगलियों के धब्बों, प्रदूषित गॅसों ,धूल आदि से मलीन न हो ।

 

 

 

An Institution of the Municipal Corporation of Greater Mumbai | Supported by the Jamnalal Bajaj Foundation Restored by INTACH, the Indian National Trust for Art and Cultural Heritage

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